मजदूर और लॉकडाउन

मजदूर की बात...



आशियाने हमने सबके हैं बनाए,
और हम ही घर को दरबदर हो रहे हैं ।
वो क्या समझेंगे हमारी ये दशाएं,
वो तो महलों में सुकून से सो रहे हैं ।
आंख में पानी नहीं है बचा साहब,
अब तो पैरों के ही छाले रो रहे हैं ।
गुमान था जिस भी सड़क को लम्बी हूं मैं,
उसे बच्चे भी कदमों से निकल पिरो रहे हैं ।
हमने खूब ट्रकों में सामान भेजा,
पर अपने सामानों का बोझा ढो रहे हैं ।
उस समय तक मालिकों के खास थे हम,
अब तो रोजी रोटी तक हम खो रहे हैं ।
~वीरेन्द्र पटेल 'वीर'


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