नज़रों के बीच जमाना भी तो है

 उसकी सादगी देख दिल मेरा दिवाना भी तो है,

दिल को रिझाता लवों का खिल जाना भी तो है,

वो जब भी निकले, कोशिश करता हूं मैं दिखूं,

क्योंकि, उससे अपना अजनबीपन हटाना भी तो है ।


ये हल्का सा सँवरना उसका कातिलाना भी तो है,

मुस्कुराकर होले से पलकों का झुकाना भी तो है,

मुझे देख कर मुस्कुराती, या आदत है उसकी,

वीरू, जरा गौर करके पता लगाना भी तो है ।

 

उसके नैन मेरी नजरों का ठिकाना भी तो है,

पर नजरें उससे सरेआम चुराना भी तो है,

चाहकर भी सड़क पर उसे देख मुस्कुराते नहीं,

क्योंकि, हम दोनों की नजरों के बीच जमाना भी तो है ।


मुझे मोहब्बत है उसको ये जताना भी तो है,

बात ये अखबारी दुनिया से छिपाना भी तो है,

मेरे घर के आंगन से दिखता नहीं है छत उसका,

पर, मुहल्ले में उसके मेरा सगा याराना भी तो है ।


सामने से उसके घर के रोज गुजरता भी तो हूं,

मिलती है सामने बात करने से डरता भी तो हूं,

जानता हूं मुहल्ले का हर शख्स फिदा है उस पर,

इशारों से प्यार उससे बयां करता भी तो हूं ।

~वीर

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