दास्तान ए मोहब्बत

किसी की मोहब्बत की दास्तान...

नजर के खेल में इक कहानी मिली ।
देखते यूं लगा क्या निशानी मिली ।
सम्भलता सा बदन, संतरी सूट में ।
केश कर दें निशा, रंग में चांदी खिली । 1

सस्ती सी इक घड़ी हाथ उसके पड़ी ।
चेहरे में हां बड़ी सादगी थी जड़ी ।
बोलने में अजब की चहक थी छुपी ।
हंसने पर यूं लगे कि खिले फुलझड़ी । 2

दोपहर वक्त था धूप छाई कड़ी ।
तभी उसकी नज़र आन मुझ पर पड़ी ।
पलक उसकी झुकी देखते ही मुझे,
फिर पुनः जब उठी, उससे नज़रें लड़ीं ‌। 3

फिर उन नजरों का जादू था छा सा गया ।
उसकी नज़रों को शायद मैं भा सा गया ।
दिल में उसकी छवि यूं थी छप सी गई,
कि अपने घर लौट आना रुला सा गया । 4

उसकी यादों ने अब तंग कर सा रखा ।
नींद चैन और सुकूं भंग कर सा रखा ।
ख्वाब दिल को थे हरपल परेशां किए,
इश्क ने क्यों ये हुड़दंग कर सा रखा । 5

शशि मेघा की गोद जाके छिपने लगा ।
उसके नामों से पत्र खुद को लिखने लगा ।
उन सवालों के खुद फिर जवाब दिये,
उसका चेहरा किताबों में दिखने लगा । 6

उसकी यादों ने दिल पर था भार किया ।
चित्र चित में सजा के इंतजार किया ।
सुबह औ शाम भी न सुहानी लगे,
रात पर भी था यादों ने वार किया । 7

कुछ महीने गए बात उनसे हुई ।
प्रेम की इक शुरुआत उनसे हुई ।
दिल को संतोष था कि हमारे हैं वो,
बस न अब तक मुलाकात उनसे हुई । 8

आगे की पंक्तियों की रचना अभी चल रही है...

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