पहली बारिश...
जी नहीं माना...
अम्बर से उतर कर अवनी में पहली बारिश जब आई तो,
उन बूंदों को निज हाथों से सहलाए बिना, जी नहीं माना ।
बूंदों के संग चली पवन जब तरुओं को लिपटाती तो,
हाथ पसार कर उस हवा से टकराए बिना, जी नहीं माना ।
मौसम की पहली बारिश में जब मिट्टी से सोंधी महक उठी ।
उस मिट्टी की भीनी खुशबू में, घुल जाए बिना, जी नहीं माना ।
परिवेश नहाकर नवल हुआ, हर्षित पुलकित सा लगता तो
खुद का भी अंतर्मन धोकर, मुस्काए बिना, जी नहीं माना ।
~वीर
हाथ पसार कर उस हवा से टकराए बिना, जी नहीं माना ।
मौसम की पहली बारिश में जब मिट्टी से सोंधी महक उठी ।
उस मिट्टी की भीनी खुशबू में, घुल जाए बिना, जी नहीं माना ।
परिवेश नहाकर नवल हुआ, हर्षित पुलकित सा लगता तो
खुद का भी अंतर्मन धोकर, मुस्काए बिना, जी नहीं माना ।
~वीर
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