आशाओं के दिए
मेरी कलम से... दीपावली विशेष...
Oct 07, 2017 16:22
वीरेन्द्र पटेल...
आशाओं के दिए दिए हैं , जिन परिवारों को दीवाली ने...
कैसे देखें उन प्रतिभाओं , की प्रतिभा को बदहाली में...
उस कुम्हार की बच्ची के मिट्टी में थे नाजुक हाथ सने...
आशाविभा थी आँखों में, मुखपर थे हर्ष के भाव घने...
उन कोमल हाथों से ढले, वे गहन दहन में दीप बने...
था निकट पर्व रोशनी का, वे चले बाजारों में बिकने...
इक हाट माँ, दूजे में पिता, तीजे हाट में प्रज्ञा दिए लिए...
थी भरी टोकरी रचनाओं से, खड़ी थी अविचल धूप पिए...
अफ्सर, बाबू और व्यापारी, सबने थे नयना फेर लिए...
हुई शाम तभी इक बालक, साथ जो अपने ईश लिए...
समझ गया व्यथा इक पल में, बोला क्या दीपक दोगी...
पैसे नहीं अदा कर सकता, बदले में क्या मूरत लोगी...
सौदा हुआ, सहस बूढ़ी माँ, बोली क्या बेटी सब दोगी...
बेच दिए खुशी से नन्ही ने, आमोद भरे वह घर लौटी...
माँ-पिता लाए थे खानपान, वो अंजलि भर पैसे लाई...
पिता बोले फुलझड़ ले लेना, माँ कहती खाना मिठाई...
बोली थी बेटी नहीं तात, बस करना चाहूँ मैं पढ़ाई...
नन्हे लवों का त्याग देख, दोनों की आँखें भर आईं...
ये ना कहानी इक बच्ची की, सब असहायों का हाल यही...
मुफ्त ना चाहें ये कुछ भी, सेवा का अवसर दो तो सही...
दो कुलों में आएगा प्रकाश, कोई इससे बड़ी संतुष्टि नही...
सम्मान करें सब प्रतिभा का, वीरू की बस इच्छा यही..
धरा से अम्बर सब रोशन हो, इस पावन पर्व दीवाली में...
कैसे देखें उन प्रतिभाओं , की प्रतिभा को बदहाली में...


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