दोस्ती

दोस्ती का फ़र्ज़

तुम कहते थे कि अच्छे दोस्त हैं हम,
पर दोस्ती का फ़र्ज़ क्यों न निभाया तुमने ।
माना मैं तुम्हारे कॉल करने की जिद पे था,
पर इक बार भी न मिस कॉल लगाया तुमने ।
माना कि मैं थोड़ा नासमझ सा ठहरा,
पर इक बार न प्यार से समझाया तुमने ।
माना मैं तुमसे कुछ दूर सा जाने लगा,
पर इक बार भी न वापस बुलाया तुमने ।
तुम चाहते रोक सकते थे गिरने से मुझे,
पर मेरी पकी सी हालत देख पथराया तुमने ।
तुम रोक सकते थे मेरी कागज की कश्ती,
पर बाल्टी भर पानी डाल तेज बहाया तुमने ।
ठीक है मेरे घाव को मरहम न था तेरे पास,
पड़ोस से नमक मांगकर क्यों लगाया तुमने ।
दोस्ती की कसमें खाने में अव्वल थे तुम,
पर दोस्ती का फर्ज क्यों न निभाया तुमने ।
~ वीर

अपनी दोस्ती
राह चाहे स्वर्ग की ही हो, दोस्तों बिन सुनसान है ।
खाना चाहे फाइवस्टार का, दोस्तों बिन बेस्वाद है ।
चाहे कुल्लू या काश्मीर हो, दोस्तों बिन श्मशान है ।
मन क्यों न हो खुशी लबालब, दोस्तों बिन बकवास है ।
दिखावे की न दोस्ती अपनी, न एक दिवस मोहताज है ।
जिस दिन साथ मिलें सब यारा, खुशियों की बरसात है ।
~ वीर

दोस्ती की परख
कुछ अमरूद लगे थे मेरे आंगन में ।
मैंने सोचा कुछ पकने को लगे रहे ।
कुछ परिंदे बैठते थे मेरी मुंडेर पर ।
मैने सोचा दोस्त अच्छे हैं बनें रहें ।
मैंनै लहज़ा नरम रक्खा था अपना ।
ताकि वो मेरे तेज की गरमी से बचे रहें ।
लगा था लोग समझने लगे हैं मुझे ।
पर वो तो मुझे परखने में लगे रहे ।
~वीर

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