तारीफ-ए-दोस्ताना

इसके नयनों में मधुकर प्याली सी है ।



वो जब भी सांस लेती है ये पवनें रुक सी जाती हैं,
वो जब भी शीश उठाती है ये डाली झुक सी जाती है,
मेरे इस दोस्त पर नजरों को तानें ठहरा सूरज भी,
उसकी रौनक से शर्माकर ये चंदा छुप सी जाती है ।

इसके नयनों में मधुकर प्याली सी है,
ये तो बाला बड़ी भोली भाली सी है,
सांवले रंग की छवि मन को लसे,
लवों पे यूं प्रभाती की लाली सी है ।

है वो सच्ची मगर इक कहानी सी है,
मानती सबको है पर मनमानी सी है,
जो भी देखे उसे देखता ही रहे,
नजर मेरी भी उसकी दीवानी सी है ।

सीधी सादी है फिर भी बवाली सी है,
बातों से वो भरी दिल की खाली सी है,
बात करके न उससे जुदा हो सके,
लगन उससे मुझे होने वाली सी है ।

उसकी मासूमियत इश्कवाली सी है,
गाल पे ज़ुल्फ लटके हां काली सी है,
देखूं सबको मगर जी न उस बिन भरे,
त्यौहारों में वो मेरी दीवाली सी है ।

उसके गालों का डिंपल गजब ही करे,
फंसकर इसमें भी ना जाने कितने मरे,
भोंह उसकी दोधारी तलवार की तरह,
साथ नैनो के मिल कत्ल अनगिन करे ।

छवि उसकी तो जाड़े की धूप सी लगे,
गर्मी की शाम भी उसके रूप सी लगे,
खिल के हँसती वो जैसे सावन की झड़ी
चहकना उसका कोयल की कूक सी लगे,

लव हां उसके कृति में धनुष सम सुनो,
दन्त दमके न उसके हीरे से कम सुनो,
गोल उसके कपोल जैसे अमरूद से,
माथे पे न शिकन न कोई गम सुनो ।

बोलती है हमेशा वो झक्की मुझे,
देखकर वो हुई हक्की-बक्की मुझे,
शक्ल मेरी बुरी या न मुझसा कोई,
बात करनी ये उससे हां पक्की मुझे ।

बैठे दोनों अब मिल एक चौपाल में,
पूंछा हँसकर फंसेगी इश्क के जाल में,
बोली मुझको न तुमसे ये उम्मीद थी,
मुझे छोड़ दो अकेला अभी हाल में ।

पूंछा किसने तुम्हें ऐसा बहका दिया,
मेरे दिल को जुदा तुमने सहसा किया,
बोली ये है मेरा खुद ही का फैसला,
चुप रहके भी सब उसने कह सा दिया ।

माफी मांगी तब उससे फिर तत्काल में,
हल्के चांटे रसीदे दो खुद के गाल में,
बोली याद रखो तुम दोस्त हैं हम सदा,
फिर से दोनों बंधे इस दोस्तीजाल में ।

~वीर

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