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कठुआ & उन्नाव पर

https://youtu.be/BhnqMQCbyoM Apr 14, 2018 15:29 ~वीरेन्द्र पटेल नमस्कार देशवाशियों , इन पंक्तियों में मैं अपने व्यक्तिगत विचारों को साझा कर रहा हूँ .. कृपया इन्हें किसी भी प्रकार की राजनीति से जोड़ने की कोशिश न करें | अगर मेरे विचारों से किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचती है, तो मैं माफी का पक्षधर हूँ | आज के शासन तंत्र में देखो, सत्ता का लचर स्वभाव हुआ | जिसके कारण एक बार फिर, कठुआ और उन्नाव हुआ | कहाँ बँधे है हाथ तुम्हारे , कहाँ की ये लाचारी है | सत्ता की क्यों ओट ढूढते , आज बलात्कारी है | ध्वस्त हो गया तंत्र देश का, कायर सा क्यों शासन है ? अब देश बचाओ दरिंदगी से, क्यों बढ़ रहे दुशासन है ? कहाँ है इनकी शरणस्थली, किसकी गोद में आसन है ? फाँसी चढ़ेगी दरिंदगों को, क्या यह केवल भाषण है ? जबाव माँगता देश आपसे, कैसा हुआ प्रशासन है ? काँप रहे क्यों हाथ आपके, सचमुच कायर शासन है ? किसका खाया था उसने जो, उसके पिता को मार दिया ? आई थी जो शरण माँगने, उस पर ही तुमने वार किया | कई कई बिटियों ने विदेश से, कई कई मेडल जीते है | ऐसी ही प्रतिभा पर पड़ते , यहाँ खून के छींटे है | ...

आशाओं के दिए

मेरी कलम से... दीपावली विशेष... Oct 07, 2017 16:22 वीरेन्द्र पटेल... आशाओं के दिए दिए हैं , जिन परिवारों को दीवाली ने... कैसे देखें उन प्रतिभाओं , की प्रतिभा को बदहाली में... उस कुम्हार की बच्ची के मिट्टी में थे नाजुक हाथ सने... आशाविभा थी आँखों में, मुखपर थे हर्ष के भाव घने... उन कोमल हाथों से ढले, वे गहन दहन में दीप बने... था निकट पर्व रोशनी का, वे चले बाजारों में बिकने... इक हाट माँ, दूजे में पिता, तीजे हाट में प्रज्ञा दिए लिए... थी भरी टोकरी रचनाओं से, खड़ी थी अविचल धूप पिए... अफ्सर, बाबू और व्यापारी, सबने थे नयना फेर लिए... हुई शाम तभी इक बालक, साथ जो अपने ईश लिए... समझ गया व्यथा इक पल में, बोला क्या दीपक दोगी... पैसे नहीं अदा कर सकता, बदले में क्या मूरत लोगी... सौदा हुआ, सहस बूढ़ी माँ, बोली क्या बेटी सब दोगी... बेच दिए खुशी से नन्ही ने, आमोद भरे वह घर लौटी... माँ-पिता लाए थे खानपान, वो अंजलि भर पैसे लाई... पिता बोले फुलझड़ ले लेना, माँ कहती खाना मिठाई... बोली थी बेटी नहीं तात, बस करना चाहूँ मैं पढ़ाई... नन्हे लवों का त्याग देख, दोनों की आँखें भर आई...

शिक्षक...

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Sep 05, 2017 13:34 https://youtu.be/zcMzbUUc3gA शिक्षकों को समर्पित कविता तम हर कर जो भरें दीप्ति, वे दीपक ही शास्वत हैं... पथबाधा चूरण की शक्ति, वे हर चिंता के नाशक हैं... स्वकर्त्तव्य सर्वोपरि भक्ति, इस शिक्षा के दायक हैं... संयम देकर हरे विरक्ति, युगपरिवर्तन वाहक हैं... चहुँमुखी यश व विजय प्राप्ति, हर राही के प्रेरक हैं... कौटिल्य, अरस्तू, सर्वपल्ली, जिनके कुल के वंशज हैं... वंदन नमन करें हम उनको, वे ईश्वर रूपी शिक्षक हैं... ~ शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षकों को नमन वंदन... ~ ©~~वीरेन्द्र पटेल अंधकार मय‌ निशा हरण कर‌, नया सबेरा लाने वाले । दुर्भाग्यों को सुला सुला कर, सोते भाग्य जगाने वाले । कायरता को दूर भगा कर, साहस भाव बढ़ाने वाले । बुरे भाव से मुक्त हमें कर, नीति पाठ पढ़ाने वाले । घबराने पर शांति दिलाकर, धीरज सदा धराने वाले । नमन करूं मैं प्रिय शिक्षकों, जग कल्याण कराने वाले । वीर